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बाढ़ ग्रस्त केरल में लेप्टोस्पायरोसिस का कहर, क्या हैं लक्षण, वजहें और बचाव के उपाय

लेप्टोस्पायरोसिस ( Leptospirosis Diseases) एक जीवाणु रोग है, जो मनुष्यों और जानवरों को प्रभावित करता है. यह लेप्टोस्पिरा जीनस के बैक्टीरिया के कारण होता है.

बाढ़ ग्रस्त केरल में लेप्टोस्पायरोसिस का कहर, क्या हैं लक्षण, वजहें और बचाव के उपाय

बाढ़ ग्रस्त केरल में रविवार को लेप्टोस्पायरोसिस से एक महिला की मौत हो गई, जिसके बाद चूहे से फैलने वाले इस बुखार से मरने वालों की संख्या 15 पहुंच गई. इसे रैट फीवर (Rat Fever) भी कहा जाता है. राज्य की स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा ने आश्वस्त किया है कि लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है. बीते दो दिनों में जानवरों से इंसानों में फैलने वाले संक्रमण से आठ लोगों की मौत हो चुकी है. इस बीमारी के फैलने का खतरा बाढ़ के दौरान सबसे अधिक होता है. कोझिकोड चिकित्सा कॉलेज अस्पताल के अधिकारियों के मुताबिक, महिला की मौत रविवार सुबह हुई.

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राज्य में रविवार को लेप्टोस्पायरोसिस के 40 मामले दर्ज किए गए. कोझिकोड में 28 मामले सामने आए. वहीं बाकी मामले अलाप्पुझा, त्रिशूर और पथानामथिट्टा में दर्ज किए गए हैं. शैलजा का कहना है कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि स्वास्थ्य विभाग ने सभी जरूरी कदम उठाए हैं. उन्होंने कहा,"प्रत्येक अस्पताल में सभी जरूरी दवाओं का भंडार है." मंत्री ने बाढ़ प्रभावित इलाके के लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी है. कोझिकोड से सबसे ज्यादा मामले सामने आने के बाद कोझिकोड चिकित्सा कॉलेज अस्पताल में एक विशेष अलग वार्ड खोला गया है. केरल स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, राज्य के करीब 20 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और इसलिए सभी की देखभाल की जानी चाहिए.



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क्या है लेप्टोस्पायरोसिस ( What is Leptospirosis) 
लेप्टोस्पायरोसिस ( Leptospirosis Diseases) एक जीवाणु रोग है, जो मनुष्यों और जानवरों को प्रभावित करता है. यह लेप्टोस्पिरा जीनस के बैक्टीरिया के कारण होता है. यह संक्रमित जानवरों के मूत्र के जरिये फैलता है, जो पानी या मिट्टी में रहते हुए कई सप्ताह से लेकर महीनों तक जीवित रह सकते हैं.

क्या हैं वजहें ( Leptospirosis Diseases Causes)
ज्यादा बारिश और उसके नतीजतन बाढ़ से चूहों की संख्या बढ़ जाने के चलते जीवाणुओं का फैलाव आसान हो जाता है. 
- संक्रमित चूहों के मूत्र में बड़ी मात्रा में लेप्टोस्पायर्स होते हैं, जो बाढ़ के पानी में मिल जाते हैं. जीवाणु त्वचा या (आंखों, नाक या मुंह की झल्ली) के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, खासकर यदि त्वचा में कट लगा हो तो."
- दूषित पानी पीने से भी संक्रमण हो सकता है. उपचार के बिना, लेप्टोस्पायरोसिस गुर्दे की क्षति, मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के चारों ओर सूजन), लीवर की विफलता, सांस लेने में परेशानी और यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकता है."
- लेप्टोस्पायरोसिस के कुछ लक्षणों में तेज बुखार, सिरदर्द, ठंड, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी, पीलिया, लाल आंखें, पेट दर्द, दस्त आदि शामिल हैं. किसी व्यक्ति के दूषित स्रोत के संपर्क में आने और बीमार होने के बीच का समय दो दिन से चार सप्ताह तक का हो सकता है.

क्या है लेप्टोस्पायरोसिस का इलाज ( Leptospirosis Treatment In Hindi) 
बीमारी का रोगी के इतिहास और शारीरिक जांच के आधार पर निदान किया जाता है. गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को उचित चिकित्सा परीक्षण कराने को कहा जाता है. शुरुआती चरण में लेप्टोस्पायरोसिस का निदान करना मुश्किल होता है, क्योंकि लक्षण फ्लू और अन्य आम संक्रमणों जैसे ही प्रतीत होते हैं. लेप्टोस्पायरोसिस का इलाज चिकित्सक द्वारा निर्धारित विशिष्ट एंटीबायोटिक्स के साथ किया जा सकता है.

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क्या हैं लेप्टोस्पायरोसिस से बचाव के उपाय ( Leptospirosis Diseases Prevention ) 
- गंदे पानी में घूमने से बचें. चोट लगी हो तो उसे ठीक से ढंके. बंद जूते और मोजे पहन कर चलें. मधुमेह से पीड़ित लोगों के मामले में यह सावधानी खास तौर पर महत्वपूर्ण है.
- अपने पैरों को अच्छी तरह से साफ करें और उन्हें मुलायम सूती तौलिए से सुखाएं. गीले पैरों में फंगल संक्रमण हो सकता है. पालतू जानवरों को जल्दी से जल्दी टीका लगवाएं, क्योंकि वे संक्रमण के संभावित वाहक हो सकते हैं.
- जो लोग लेप्टोस्पायरोसिस के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आते-जाते हैं, उन्हें तालाब में तैरने से बचना चाहिए. केवल सीलबंद पानी पीना चाहिए. खुले घावों को साफ करके ढंक कर रखना चाहिए.


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