विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में लैम्ब्डा वेरिएंट को लेकर चिंता जताई है. 14 जून को, डब्ल्यूएचओ ने कोविड के इस नए और सातवें वेरिएंट के बारे में जानकारी दी.
अब एक और नए वेरिएंट के आने से चिंता और बढ़ गई है.
जबकि कोविड-19 के डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरिएंट दुनिया भर में संक्रमण में वृद्धि के कारण बने हुए हैं. वहीं अब एक और नए वेरिएंट के आने से चिंता और बढ़ गई है. अब 'लैम्ब्डा वेरिएंट' नया उभरता हुआ खतरा बताया जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में लैम्ब्डा वेरिएंट को लेकल चिंता जताई थी. 14 जून को, डब्ल्यूएचओ ने कोविड के इस नए और सातवें वेरिएंट के बारे में जानकारी दी. डब्ल्यूएचओ ने बताया कि "लैम्ब्डा कई देशों में कम्युनिटी ट्रांसमिशन के साथ जुड़ा हुआ है और समय के साथ बढ़ते प्रसार के साथ-साथ कोविड-19 की मामलों में वृद्धि देखी जा सकती है.
मलेशिया के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, कोरोनवायरस का लैम्ब्डा संस्करण डेल्टा की तुलना में घातक हो रहा है, जो पहली बार भारत में पाया गया था. इसमें कहा गया है कि पिछले चार हफ्तों में 30 से अधिक देशों में लैम्ब्डा वैरिएंट के मामलों का पता चला है.
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लैम्ब्डा वैरिएंट के सबसे पहले कहां पता लगा था?
लैम्ब्डा वेरिएंट के सबसे पहले पेरू में पता लगा था. माना जाता है कि यहीं लैम्ब्डा वेरिएंट की उत्पत्ति हुई है और यह वहीं लगभग 80% संक्रमणों के लिए जिम्मेदार है. यह दिसंबर 2020 की शुरुआत के मामलों में पाया गया था. इस वेरिएंट के पड़ोसी देश चिली में भी कई मामले सामने आए थे, लेकिन कुछ समय पहले तक, यह अर्जेंटीना सहित कुछ मुट्ठी भर दक्षिण अमेरिकी देशों में ही पाया जा रहा था. यूके ने कहा कि उसने इस वेरिएंट को 6 संक्रमित लोगों में पाया है. हाल ही में, यह ऑस्ट्रेलिया में भी पाया गया है.
दूसरे वेरिएंट से कैसे अलग है लैम्ब्डा वेरिएंट?
डब्ल्यूएचओ के मुताबित अब 11 आधिकारिक SARS-CoV-2 वेरिएंट हैं. सभी SARS-CoV-2 वेरिएंट अपने स्पाइक प्रोटीन में उत्परिवर्तन द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं. ये वायरस के घटक हैं जो इसे मानव कोशिकाओं पर आक्रमण करने की अनुमति देते हैं.
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डब्ल्यूएचओ ने कहा कि, "लैम्ब्डा में संदिग्ध फेनोटाइपिक प्रभाव के साथ कई उत्परिवर्तन होते हैं, जैसे वृद्धि हुई ट्रांसमिसिबिलिटी या एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने के लिए संभावित रेजिस्टेंस"
हालांकि, अभी भी लैम्ब्डा वेरिएंट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.
डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा, "इन जीनोमिक परिवर्तनों से जुड़े प्रभाव के सीमित सबूत हैं, और प्रतिरूप पर प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने और प्रसार को नियंत्रित करने के लिए फेनोटाइप प्रभावों में और मजबूत अध्ययन की जरूरत है." "इन वेरिएंट के प्रति टीकों की निरंतर प्रभावशीलता को मान्य करने के लिए आगे के अध्ययन की भी जरूरत है."
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