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कम उम्र में गंजापन कर रहा था परेशान, लॉकडाउन में बढ़ी हेयर ट्रांसप्लांट कराने वालों की संख्या

डर्मेटोलोजिस्ट्स का कहना है कि गंजेपन की समस्या आज पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गई है. अब यह कुछ ही लोगों तक सीमित नहीं रही. कुछ लोग इसके लिए बदलते जीन्स को जिम्मेदार ठहराते हैं तो वहीं आधुनिक लाइफस्टाइल भी बालों की समस्या का मुख्य कारण बन चुकी है.

कम उम्र में गंजापन कर रहा था परेशान, लॉकडाउन में बढ़ी हेयर ट्रांसप्लांट कराने वालों की संख्या

आज पुरूष कम उम्र में भी बाल गिरने की समस्या के शिकार हो रहे हैं

आज पुरूष कम उम्र में भी बाल गिरने की समस्या के शिकार हो रहे हैं, यहां तक कि 20 साल की उम्र में भी ऐसे मामले देखे जा रहे हैं. तकरीबन एक पीढ़ी पहले तक स्थिति ऐसी नहीं थी, उस समय 40 वर्ष की उम्र के बाद भी बाल बने रहते थे और अब तो बालों की समस्याएं महिलाओं को भी बख्श नहीं रहीं हैं. हेयर रीस्टोरेशन के बारे में जानकारी हासिल करने वाले 10 में से 2 मरीज महिलाएं ही होती हैं. आखिर ये क्या हो रहा है?

डर्मेटोलोजिस्ट्स का कहना है कि गंजेपन की समस्या आज पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गई है. अब यह कुछ ही लोगों तक सीमित नहीं रही. कुछ लोग इसके लिए बदलते जीन्स को जिम्मेदार ठहराते हैं तो वहीं आधुनिक लाइफस्टाइल भी बालों की समस्या का मुख्य कारण बन चुकी है. बढ़ता तनाव, पोषण की कमी, प्रदूषण और गतिहीन जीवनशैली जैसे कारक आज भारतीयों में समय से पहले बाल गिरने की समस्या का मुख्य कारण बन चुके हैं.

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कोविड से ठीक होने के बाद बढ़े बाल गिरने के मामले

बालों का पतला होना या गंजापन आज युवाओं के लिए भी आम समस्या बन चुकी है. आज के दौर में जब भारतीय सबसे अच्छे दिखने के लिए हर कोशिश करते हैं, वहीं बाल गिरना या गंजापन उनके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाता है. इसका सबसे ज्यादा असर युवाओं पर पड़ता है. गंजापन यानि एंड्रोजेनिक एलोपेसिया आज बहुत आम हो चुका है, जिसमें खासतौर पर पुरूषों के बाल प्राकृतिक रूप से कम होने लगते हैं. हालांकि पहले की तुलना में आज यह प्रक्रिया बहुत तेज हो गई है. महामारी ने इस समस्या को और भी गंभीर बना दिया है. बहुत से लोग कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद बाल गिरने की शिकायत लेकर आते हैं. कोविड से ठीक होने के बाद बाल गिरने के मामले और अधिक बढ़े हैं.



कैसे ठीक होगी बालों के झड़ने की समस्या...?

तो इस समस्या को हल करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? सबसे पहले प्रोटीन से भरपूर डाइट का सेवन करना बहुत जरूरी है. साथ ही अन्य मैक्रो एवं माइक्रोन्युट्रिएन्ट्स को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है. लोगों को गंजेपन या बाल गिरने के कारण समझने होंगे. इन कारणों को शुरूआती अवस्था में ही दूर करना जरूरी है, जिन लोगों को बाल गिरने की समस्या बहुत ज्यादा है या जो गंजेपन का शिकार हो चुके हैं, उनके लिए हेयर ट्रांसप्लान्ट भी एक विकल्प है, लेकिन यह प्रक्रिया किसी योग्य, कुशल एवं प्रशिक्षित सर्जन से ही करवानी चाहिए.

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किफायती और भरोसेमंद हेयर ट्रांसप्लान्ट तकनीक

तकरीबन एक दशक पहले तक भारतीयों को अच्छा हेयर ट्रांसप्लान्ट कराने के लिए विदेश जाना पड़ता था. भारत में यह प्रक्रिया अपनी शुरूआती अवस्था में थी, इसलिए लोग भारत में हेयर ट्रांसप्लान्ट कराने से हिचकते थे. भारत में इस प्रक्रिया को कराने वाले ज्यादातर लोगों को करेक्टिव सर्जरी कराने की नौबत आ जाती है. परिणामस्वरूप हेयर ट्रांसप्लान्ट को लेकर लोगों की राय अच्छी नहीं थी. या फिर लोग इस प्रक्रिया के लिए तुर्क, ग्रीस जाना पसंद करते थे. अन्यथा आखिरी विकल्प के रूप में विग चुनते थे, लेकिन आज डी.एच.टी. (डायरेक्ट हेयर ट्रांसप्लान्ट) जैसी हेयर रीस्टोरेशन तकनीकों ने ट्रांसप्लान्ट को भरोसेमंद, किफायती बना दिया है और अब आप इसे भारत में ही करा सकते हैं, इसके लिए आपको विदेश जाने की ज़रूरत नहीं.

अब भारत भी हेयर ट्रांसप्लान्ट में पीछे नहीं है. डी.एच.टी. की खोज भारत में ही हुई और अब दुनिया भर के डॉक्टर इस प्रक्रिया को अपना रहे हैं. भारत अब हेयर ट्रांसप्लान्ट के लिए पसंदीदा डेस्टिनेशन बन चुका है. यहां तक कि दुबई, यूएसए, यूके, ग्रीस और तुर्क से भी मरीज़ हेयर ट्रांसप्लान्ट के लिए भारत आते हैं. हाल ही के वर्षों में भारत के जाने-माने हेयर क्लिनिकों में हेयर ट्रांसप्लान्ट के लिए आने वाले विदेशी नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ी है, जो कुल मरी़जो का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा बनाते हैं.

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डी.एच.टी., एफ.यू.इ. (फॉलिक्युलर युनिट एक्सीजन) की तुलना में बेहतर है. डी.एच.टी. प्रक्रिया में एक व्यक्ति के फॉलिकल्स को एक्ट्रैक्ट किया जाता है और इन्हें तुरंत सिर की त्वचा पर मौजूदा बाल्ड पैच (सिर का वह स्थान जहां गंजापन हो) पर इम्प्लान्ट कर दिया जाता है, जिससे ‘आउट ऑफ द बॉडी टाइम' कम हो जाता है और ग्राफ्ट के सर्वाइवल की संभावना बढ़ जाती है. डी.एच.टी. का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके सफल होने की संभावना अधिक होती है और साथ ही सर्जरी में समय भी कम लगता है. हेयर फॉलिकल्स को ज्यादा लम्बे समय के लिए शरीर से बाहर नहीं रखा जाता है, इसलिए परिणाम बेहतर होते हैं.

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लॉकडाउन में बढ़ी हेयर ट्रांसप्लांट कराने वालों की संख्या

एक वास्तविकता यह भी है कि लॉकडाउन के बाद ऑफिस फिर से खुलने लगे हैं. एक साल से भी ज्यादा समय तक घर से काम करने के बाद सब ऑफिस लौट रहे हैं. जिन लोगों के सिर पर गंजेपन के पैच थे, वे पूरे बालों के साथ ऑफिस आ रहे हैं. इसका श्रेय नए दौर के भरोसेमंद एवं किफायती हेयर ट्रांसप्लान्ट को जाता है. लॉकडाउन के कारण लोगों को अपने बालों की देखभाल के बारे में जानने का मौका मिला. बहुत से लोगों ने लॉकडाउन हटने के बाद ट्रांसप्लान्ट का विकल्प चुना. अब डॉक्टरों के पास हेयर ट्रांसप्लान्ट की जानकारी पाने वाले मरीजों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. बालों से संबंधित जानकारी पाने वाले लोगों की संख्या में 3 गुना बढ़ोतरी हुई है. बहुत से डॉक्टरों का कहना है कि कोविड से पहले वे सप्ताह में 3 सर्जरियां करते थे, अब तकरीबन 10 सर्जरियां कर रहे हैं. 

हेयर ट्रांसप्लान्ट का चलन तेजी से बढ़ रहा है. लोग अब इस प्रक्रिया को अपना रहे हैं. चुपचाप अपने आत्मविश्वास को ठेस पहुंचते देखने के बजाए वे अब इस मुश्किल को और नहीं सहना चाहते हैं और गंजेपन को दूर कर व्यक्तिगत एवं पेशेवर जीवन में बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं, और पूरे आत्मविश्वास के साथ जिंदगी जीना चाहते हैं.

(डॉ प्रदीप सेठी, सह-संस्थापक, युजेनिक्स हेयर साइन्सेज एण्ड को-इन्वेंटर -डी.एच.टी. और डॉ अरीका बंसल, सह-संस्थापक, युजेनिक्स हेयर साइन्सेज एण्ड को-इन्वेंटर -डी.एच.टी.)

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