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Menopause: मेनोपॉज में महिलाओं को क्यों होता है डिप्रेशन, जानें क्या हैं लक्षण और कैसे करें इससे डील

मेनोपॉज, ये वो वक्त होता है जब पीरियड्स होने बंद हो जाते हैं. अब  इसका मतलब ये नहीं है कि अगर आपको पिछले 3 महीने से पीरियड्स नहीं आए तो यह मेनोपॉज है.

Menopause: मेनोपॉज में महिलाओं को क्यों होता है डिप्रेशन, जानें क्या हैं लक्षण और कैसे करें इससे डील

Menopause: नींद की कमी, यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, कम पेशाब आना या लगातार पेशाब आना भी इसके लक्षण हैं.

महिलाओं की लाइफ में कई पड़ाव आते हैं, जिनमें से एक है मेनोपॉज. ये वो वक्त होता है जब पीरियड्स होने बंद हो जाते हैं. अब  इसका मतलब ये नहीं है कि अगर आपको पिछले 3 महीने से पीरियड्स नहीं आए तो यह मेनोपॉज है. असल में मेनोपॉज उस स्थि‍ति को माना जाता है जब किसी महिला को एक साल तक पीरियड्स न आए हों. आम तौर पर 45 से 50 की उम्र के आसपास ऐसा होता है. कई मामलों में अब 36 साल की उम्र में भी मेनोपॉज देखा गया है. इसे अर्जी मेनोपॉज कहा जाता है. 

कैसे होते हैं 

महिलाएं लाइफ में कई बार होर्मोनल बदलावों को झेलती हैं. 13 साल के बाद जो पीरियड्स आने शुरु होते हैं वो 45 से 50 के बीच में बंद हो जाते हैं. असल में इस दौरान ओवुलेशन बंद हो जाता है. तो इससे क्या होता है 



इससे होता ये है कि मेनोपॉज के बाद गर्भधारण संभव नहीं होता. ऐसा इसलिए क्योकि महिलाओं में फॉलिकल्स की वजह से अंडाशय के अंडे रिलीज होते हैं. और मेनोपॉज के प्रोसेस के दौरान हर महीने बनने वाले फॉलिकल्स की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है. और जब ये फॉलिकल्स बनने बंद हो जाते हैं, तो पीरियड्स भी बंद हो जाते हैं और अंडे न होने के चलते प्रेगनेंसी या कंसीव करना पॉसिबल ही नहीं होता. 

लक्षण 



अब ऐसी बहुत सी औरतें हैं, जो फैमिली प्लानिंग के बाद सोचती हैं कि मेनोपॉज हो जाए तो अच्छा, लेकिन यकीन मानिए ये उतना भी अच्छा नहीं. क्योंकि मेनोपॉज अकेले नहीं आते... ये अपने साथ लाते हैं बहुत सारे होर्मोनल चेंजिस. मूड स्व‍िंग्स, गुस्सा, आंसू और दर्द. अब ऐसा भी नहीं कि हर किसी को इन चीजों का सामना करना पड़े. कुछ महिलाएं इतनी लकी होती है कि उनके मेनोपॉज बहुत ही आसानी से हो जाते हैं. पर उनका क्या, जिन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है. 

मेनोपॉज के लक्षणों में शामिल हैं 

- सबसे पहला लक्षण यह हो सकता है कि शरीर में गर्माहट महसूस होने लगती है. इसे हॉट फ्लैश भी कहते हैं. इसमें अचानक बहुत ज़्यादा पसीना आना, चेहरे, गर्दन और सीने पर ज्यादा गर्मी महसूस होती है.

- इसके अलावा, वेजाइना में सूखापन और दर्द का अनुभव भी महसूस हो सकती है. इस कम ल्यूब्रिकेशन की वजह से कई महिलाओं को सेक्स के दौरान दर्द का अनुभव भी होता है. 

- मासिक धर्म की अवधि में बदलाव हो सकता है. यह कम या ज्यादा हो सकती है. पीरियड में खून का बहाव हल्का या तेज हो सकता है. 

- नींद की कमी, यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, कम पेशाब आना या लगातार पेशाब आना भी इसके लक्षण हैं. 

- हर वक्त तनाव महसूस होना, वजन का अचानक से बढ़ना, भूख कम होना, बालों और त्वचा के टिश्यूज में बदलाव वगैरह भी इसके लक्षण हैं. इसके बाद ज्यादातर महि‍लाओं में एजिंग के लक्षण नजर आने लगते हैं.

- मेनोपॉज के बाद महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. इसके कारण हड्डियां कमजोर हो सकती हैं.

- सिर के बाल झड़ना और चेहरे पर बाल आ जाना भी इसके लक्षणों में से एक है. कुछ लक्षण ऐसे होते हैं, जिनके दिखने पर डॉक्टर से सलाह लेनी जरूरी है. कौन से हैं ऐसे लक्षण. 

डॉक्टर को कब दिखाएं 

कुछ महिलाओं में 40 की उम्र से पहले ही मेनोपॉज देखने को मिलता है. इसे पेरिमेनोपॉज कहा जाता है. हालांकि, ऐसा सिर्फ 1 फीसदी महिलाओं के साथ होता है. ऐसी स्थिति में डॉक्टर से मिला चाहिए. 

अगर ब्लड ज्यादा आ रहा है. तो भी डॉक्टर से मिलें. अब यह कैसे समझा जाए कि ब्लड ज्यादा है. तो आसानी से समझने के लिए अपने पैड काउंट करें. अगर आपको 4 घंटे से पहले पैड बदलना पड़ रहा है और आप दिन में 5 बार से ज्यादा पैड बदल  रही हैं या यह दर्दनाक हो रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें. 

मेनोपॉज दर्दनाक क्यों हो सकता है?

इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. सबसे पहले तो अपने डॉक्टर से मिलें. अगर वह इसे नॉर्मल पाता है, तो हो सकता है कि यह एस्ट्रोजन की कमी की वजह से हो. 

अब सवाल उठाता है कि एस्ट्रोजन क्या है, तो यह एक होरमोन है, जो पीरियड्स को रेगुलर रखने और जनन प्रक्रिया दोनों के लिए है बहुत जरूरी है. और मेनोपॉज के वक्त यह कम होने लगता है. ऐसे में ओव्‍यूलेशन में गड़बड़ी हो सकती है, योनि का सूखापन, ऑस्टियोपोरोसिस या यूटीआई यानी यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का शि‍कार हो सकती हैं. ऐसे में डॉक्टर की सलाह पर कैल्शि‍यम लिया जा सकता है. 

- संतुलित आहार भी बहुत मददगार होगा. ज्यादा से ज्यादा फायबर लें. 
- डायट में सेचुरेटेड फैट, ऑइल और शुगर को कम करने के साथ कई प्रकार के फल, सब्जियां और साबुत अनाज को शामिल करें. 
-  डेयरी उत्पाद जैसे दूध, दही और चीज़ भी पर्याप्त मात्रा में लें, ताकि शरीर को कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, मैग्निशियम, विटामिन डी और विटामिन के मिल पाए. 
- मेनोपॉज के बाद वजन बढ़ सकता है, इसलिए रोजाना 30 से 40 मिनट व्यायाम करें या टहलें. 


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