जब हम जहरीले कणों से युक्त हवा में सांस लेते हैं, तो उसकी वजह से संभोग की इच्छा पैदा करने के लिए जरूरी टेस्टोस्टेरॉन और स्पर्म सेल के प्रोडक्शन में कमी आने लगती है.

शुक्राणुओं की संख्या
डॉक्टर्स ने बताया कि "कई लोगों के वीर्य में तो शुक्राणुओं की संख्या इतनी कम पाई गई है कि गर्भधारण के लिए जरूरी न्यूनतम मात्रा जितने शुक्राणु भी उनमें नहीं पाए गए. स्पर्म काउंट में इतनी ज्यादा कमी आने की वजह से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है और शुक्राणुओं के एक जगह इकठ्ठा हो जाने की वजह से वे फेलोपाइन ट्यूब में भी सही तरीके से नहीं जा पाते हैं, जिसके चलते कई बार कोशिश करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो पाता है."
आखिर बुढ़ापे से इतना ड़र क्यों... 60 फीसदी लोगों की सोच है नेगेटिव...
गर्मी की छुट्टियों में भी रुकने न पाएं बच्चों की शैतानियां, यूं रखें सेहत का ख्याल...
कम ही नहीं ज्यादा नींद भी है खतरनाक, होंगे ये नुकसान...
पुरुषों की ताकत में कमी
डॉक्टर्स ने कहा, "पुरुषों में फर्टिलिटी कम होती जा रही है, इसका सबसे पहला और प्रमुख संकेत संभोग की इच्छा में कमी के रूप में सामने आता है. स्पर्म सेल्स के खाली रह जाने और उनका अधोपतन होने के पीछे जो मैकेनिज्म मुख्य कारण के रूप में सामने आता है, उसे एंडोक्राइन डिसरप्टर एक्टिविटी कहा जाता है, जो एक तरह से हारमोन्स का असंतुलन है."
प्रदूषण का असर
पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे जहरीले कण, जो कि हमारे बालों से भी 30 गुना ज्यादा बारीक और पतले होते हैं, उनसे युक्त हवा जब सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में जाती है, तो उसके साथ उसमें घुले कॉपर, जिंक, लेड जैसे घातक तत्व भी हमारे शरीर में चले जाते हैं, जो नेचर में एस्ट्रोजेनिक और एंटीएंड्रोजेनिक होते हैं. लंबे समय तक जब हम ऐसे जहरीले कणों से युक्त हवा में सांस लेते हैं, तो उसकी वजह से संभोग की इच्छा पैदा करने के लिए जरूरी टेस्टोस्टेरॉन और स्पर्म सेल के प्रोडक्शन में कमी आने लगती है.

Photo Credit: iStock
फेक्ट फाइल
- स्पर्म सेल की लाइफ साइकिल 72 दिनों की होती है और स्पर्म पर प्रदूषण का घातक प्रभाव लगातार 90 दिनों तक दूषित वातावरण में रहने के बाद नजर आने लगता है.
- सल्फर डायऑक्साइड की मात्रा में हर बार जब भी 10 माइक्रोग्राम की बढ़ोतरी होती है, तो उससे स्पर्म कॉन्संट्रेशन में 8 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है, जबकि स्पर्म काउंट भी 12 प्रतिशत तक कम हो जाता है और उनकी गतिशीलता या मॉर्टेलिटी भी 14 प्रतिशत तक कम हो जाती है.
- स्पर्म के आकार और गतिशीलता पर असर पड़ने की वजह से पुरुषों में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस अचानक बढ़ जाता है और डीएनए भी डैमेजज होने लगता है, जिससे उनकी फर्टिलिटी पर काफी बुरा असर पड़ता है और उनकी उर्वर क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है.
- विटामिन ई और सेलेनियम हमारे रक्त में मौजूद आरबीसी यानी रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सिडेटिव डैमेज से बचाते हैं, जिससे आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले स्पर्म मोबिलिटी में बढ़ोतरी होती है.
- इसके अलावा जिंक भी शरीर के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण मिनरल है, जो स्पर्म सेल्स के लिए एक तरह से बिल्डिंग ब्लॉक का काम करता है और अच्छी क्वॉलिटी के शुक्राणुओं के निर्माण में काफी मददगार साबित होता है.
और खबरों के लिए क्लिक करें.
NDTV Doctor Hindi से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook पर ज्वॉइन और Twitter पर फॉलो करें... साथ ही पाएं सेहत से जुड़ी नई शोध और रिसर्च की खबरें, तंदुरुस्ती से जुड़े फीचर्स, यौन जीवन से जुड़ी समस्याओं के हल, चाइल्ड डेवलपमेंट, मेन्स हेल्थ, वुमन्स हेल्थ, डायबिटीज और हेल्दी लिविंग अपडेट्स.
ताज़ातरीन ख़बरें
Tomato Flu: चिकनगुनिया के समान लग रहा है टमाटर फ्लू, जानें लक्षण, कारण और बचाव के तरीके
How To Balance Gut Bacteria: आपका पेट ही है बीमारियों की जड़, हेल्दी गट के लिए इन तरीकों को अपनाएं
Weight Loss के लिए उपवास कारगर, आसान और हेल्दी तरीका है? जानें फास्ट से कितनी कैलोरी बर्न होती हैं