इस बीमारी का पूरा नाम है डिप्थीरिया कॉरीनेबैक्टीरियम. यह डिप्थीरी नामक बैक्टिरिया से पैदा होती है.
इस बीमारी का पूरा नाम है डिप्थीरिया कॉरीनेबैक्टीरियम.
उत्तर पश्चिम दिल्ली में नगर निगम के एक अस्पताल में डिप्थीरिया से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 18 हो गई है. इलाके के मेयर ने मौतों की जांच के लिए एक समिति गठित की है. महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में 20 सितंबर को 12 बच्चों की मौत हुई थी जबकि एलएनजेपी अस्पताल में एक की मौत हुई है.
उत्तर दिल्ली नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नगर निगम के अस्पताल में अबतक कुल 18 बच्चों की मौत हो चुकी है. 17 मरीज दिल्ली के बाहर के थे जबकि एक दिल्ली का था. उन्होंने अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक से मिली जानकारी के हवाले से आंकड़े बताए. उत्तर पश्चिम दिल्ली में स्थित अस्पताल उत्तर दिल्ली नगर निगम के तहत आता है. सूत्रों ने बताया कि इस बीच उत्तर दिल्ली के मेयर आदेश गुप्ता ने मौतों की जांच के लिए एक समिति गठित की है और रिपोर्ट मांगी है.
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क्या है डिप्थीरिया
इस बीमारी का पूरा नाम है डिप्थीरिया कॉरीनेबैक्टीरियम. यह डिप्थीरी नामक बैक्टिरिया से पैदा होती है. डिप्थीरी जीवाणु एक तेज जहर छोड़ता है, जो पूरे शरीर के ऊतकों और अंगों को नुकसान पहुंचता है. आंकड़ों के अनुसार साल 2000 में पूरी दुनिया में डिप्थीरिया के तकरीबन तीस हजार केस दर्ज हुए. जिनमें से करीब तीन हजार लोगों की मौत हो गई थी.
क्या हैं डिप्थीरिया के लक्षण
- गले की खराश,
- भूख की कमी
- बार बार बुखार आना
डिप्थीरिया का संक्रमण बढ़ने पर छद्म-झिल्ली नाक पर, टॉन्सिल्स, गले पर साफ दिखती है.
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कैसे बनती है डिप्थीरिया में झिल्ली
डिप्थीरिया में शरीर के किसी भाग पर छद्म-झिल्ली का निर्माण हो सकता है. इसकी वजह होती है वह जीवाणु. यह बैक्टिरीया से छोड़े गए जहर से जुड़े बेकार उत्पादों और प्रोटीन से होता है. यह पतली सी झिल्ली सेल्स से चिपक जाती है और सांस लेने में परेशानी पैदा कर सकती है.
कैसे फैलता है डिप्थीरिया
डिप्थीरिया एक संक्रामक रोग है. यह बड़ी तेजी से फैलता है. डिप्थीरिया एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे को हो सकता है. यह सांस से फैलता है. अगर संक्रमित व्यक्ति का इलाज सही समय पर न हो तो यह दो या तीन हफ्तों तक संक्रामक बना रहता है.
ट्रीटमेंट और केयर
डिप्थीरिया के इलाज के लिए डिप्थीरिया जीवाणु को मारना पड़ता है. आम तौर पर इसके लिए एंटिबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता है. संक्रमण से बचने के लिए संक्रमित व्यक्ति को अकेले रखा जाता है. आमतौर पर एंटीबायोटिक्स से किए गए इलाज के बाद यह 48 घंटे बाद यह ठीक हो जाता है.
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