पॉलीअनसेचुरेड फैट अम्ल में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटअम्ल आते हैं, जिन्हें एराकिडोनिक अम्ल कहते हैं.
अस्थमा लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है, जिसे लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है. कई रोगी जब खुद को बेहतर महसूस करते हैं तो इंहेलर लेना छोड़ देते हैं. यह खतरनाक हो सकता है, क्योंकि आप उस इलाज को बीच में छोड़ रहे हैं, जिससे आप फिट और स्वस्थ रहते हैं. रोगियों को इंहेलर छोड़ने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए. अपनी मर्जी से इंहेलर छोड़ना जोखिमभरा हो सकता है.
अस्थमा में सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द, खांसी और घरघराहट होती है. इस अटैक का मुख्य कारण शरीर में मौजूद बलगम और संकरी श्वासनली है लेकिन इसके अलावा अस्थमा के अटैक के कई बाहरी कारण भी होते हैं, जिस वजह से दमे का अचानक अटैक पड़ता है.
धूल-मिट्टी का सबसे बुरा असर दमा के मरीज़ों को होता है. ऐसे में ज़रूरी है कि नीचे दिए गए टिप्स को अस्थमा के मरीज़ फॉलो करें.
1. सबसे पहले अपने मुंह, नाक, आंखे और कानों को कपड़े से बांध लें, ताकि कहीं से धूल आपके शरीर में ना जा पाए.
2. अगर आपके पास पानी मौजूद हो तो सबसे बेहतर है कि आप कपड़े को गीला करके मुंह पर बांधे.
3. आंधी या तूफान से खुद की रक्षा करने के लिए सुरक्षित जगह पर जाएं, जहां आप खुद को धूल-मिट्टी से बचा सकें.
4. घर पहुंच कर सबसे पहले नहाएं और हल्के गुनगुने पानी से गरारे कर गले को साफ करें.
5. अगर आप घर में मौजूद हों तो घर के खिड़की और दरवाजे बंद रखें.
6. धूल की वजह से गले और नाक में खुजली या इरिटेशन हो तो 10 से 20 मिनट तक स्टीम लें.
7. हमेशा अपनी दवाइयां और इनहेलर साथ में रखें, ताकि इमरजेंसी में इन्हें खा सकें.
8. इन बचावों के बाद भी अगर सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत अस्पताल जाएं.
अस्थमा के अटैक के कई बाहरी कारण भी होते हैं, जिस वजह से दमे का अचानक अटैक पड़ता है. यहां जानें ऐसे 10 कारणों के बारे में, जिनके कारण अस्थमा का अटैक आता है.
बच्चे को आपसे दूर करने वाली यह लत आप उसे खुद ड़ाल रहे हैं...
1. उमस और बदलते मौसम में बाहर रहना और घंटों घूमना
2. धूल और मिट्टी वाले कमरे में पंखा चलाना, इससे शरीर में धूल-मिट्टी जाती है, जिससे अस्थमा अटैक होता है
3. लंबे समय तक तकिया या चादर न बदलना
4. बार-बार धुएं वाले एरिया में निकलना या फिर दीवाली जैसे मौकों पर पटाखों के बीच ज्यादा रहना
5. ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ न करना
6. अस्थमा पीड़ित के कमरे की रोज़ाना सफाई न करना
7. अस्थमा पीड़ित के आस-पास जानवरों का रहना या फिर घर में जानवर पालना
8. खाने में ज़्यादा नमक खाना
9. ज़्यादा धूम्रपान करना और शराब पीना
10. सर्दियों में खांसी-ज़ुकाम का ठीक इलाज न करना
किसी महामारी से कम नहीं है मौसम का ये हमला...
बढ़ते प्रदूषण और बदलती लाइफस्टाइल की वजह से ज्यादातर बच्चे एलर्जी से परेशान रहते हैं. ऐसे बच्चे ज्यादातर एंटी बायोटिक्स पर रहते हैं और कई बार उनकी हालत इतनी बिगड़ जाती है कि उन्हें स्टेरॉयड तक देने पड़ते हैं. इस लिहाज से बच्चों के खान-पान में ध्यान देना बेहद जरूरी है. कुछ टिप्स-
1. अपने बच्चों के खाने में उन चीजों को शामिल करना चाहिए जो न सिर्फ एलर्जी से लड़ने में उनकी मदद करें, बल्कि उनके शरीर की इम्यूनिटी भी बढ़ाएं.
2. बादाम, मछली जैसे सैलमॉन, पटसन के बीज और सोयाबीन तेल में मौजूद जरूरी पॉलीअनसेचुरेटेड फैट अम्ल आपके बच्चों के खाने में शामिल होकर उन्हें एलर्जी संबंधी बीमारियों से दूर रखते हैं.
3. इनका सेवन आपके बच्चे को खास तौर से अस्थमा और नाक में जलन के खतरे को रोकने में कारगर होगा.
अस्थमा और नाक की एलर्जी संबंधी बीमारियों से बच्चों के बचपन पर असर पड़ता है.
4. पॉलीअनसेचुरेड फैट अम्ल में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटअम्ल आते हैं, जिन्हें एराकिडोनिक अम्ल कहते हैं.
5. ऐसे बच्चों में, जिनमें आठ साल की उम्र में ओमेगा 3 का हाई ब्लड लेवल होता है, उनमें 16 साल की उम्र में अस्थमा, नाक में जलन और श्लेष्मा झिल्ली में एलर्जी होने का खतरा कम रहता है.
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अस्थमा में सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द, खांसी और घरघराहट होती है. इस अटैक का मुख्य कारण शरीर में मौजूद बलगम और संकरी श्वासनली है लेकिन इसके अलावा अस्थमा के अटैक के कई बाहरी कारण भी होते हैं, जिस वजह से दमे का अचानक अटैक पड़ता है.
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धूल-मिट्टी का सबसे बुरा असर दमा के मरीज़ों को होता है. ऐसे में ज़रूरी है कि नीचे दिए गए टिप्स को अस्थमा के मरीज़ फॉलो करें.
1. सबसे पहले अपने मुंह, नाक, आंखे और कानों को कपड़े से बांध लें, ताकि कहीं से धूल आपके शरीर में ना जा पाए.
2. अगर आपके पास पानी मौजूद हो तो सबसे बेहतर है कि आप कपड़े को गीला करके मुंह पर बांधे.
3. आंधी या तूफान से खुद की रक्षा करने के लिए सुरक्षित जगह पर जाएं, जहां आप खुद को धूल-मिट्टी से बचा सकें.
4. घर पहुंच कर सबसे पहले नहाएं और हल्के गुनगुने पानी से गरारे कर गले को साफ करें.
5. अगर आप घर में मौजूद हों तो घर के खिड़की और दरवाजे बंद रखें.
6. धूल की वजह से गले और नाक में खुजली या इरिटेशन हो तो 10 से 20 मिनट तक स्टीम लें.
7. हमेशा अपनी दवाइयां और इनहेलर साथ में रखें, ताकि इमरजेंसी में इन्हें खा सकें.
8. इन बचावों के बाद भी अगर सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत अस्पताल जाएं.
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अस्थमा के अटैक के कई बाहरी कारण भी होते हैं, जिस वजह से दमे का अचानक अटैक पड़ता है. यहां जानें ऐसे 10 कारणों के बारे में, जिनके कारण अस्थमा का अटैक आता है.
बच्चे को आपसे दूर करने वाली यह लत आप उसे खुद ड़ाल रहे हैं...
1. उमस और बदलते मौसम में बाहर रहना और घंटों घूमना
2. धूल और मिट्टी वाले कमरे में पंखा चलाना, इससे शरीर में धूल-मिट्टी जाती है, जिससे अस्थमा अटैक होता है
3. लंबे समय तक तकिया या चादर न बदलना
4. बार-बार धुएं वाले एरिया में निकलना या फिर दीवाली जैसे मौकों पर पटाखों के बीच ज्यादा रहना
5. ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ न करना
6. अस्थमा पीड़ित के कमरे की रोज़ाना सफाई न करना
7. अस्थमा पीड़ित के आस-पास जानवरों का रहना या फिर घर में जानवर पालना
8. खाने में ज़्यादा नमक खाना
9. ज़्यादा धूम्रपान करना और शराब पीना
10. सर्दियों में खांसी-ज़ुकाम का ठीक इलाज न करना
किसी महामारी से कम नहीं है मौसम का ये हमला...
बढ़ते प्रदूषण और बदलती लाइफस्टाइल की वजह से ज्यादातर बच्चे एलर्जी से परेशान रहते हैं. ऐसे बच्चे ज्यादातर एंटी बायोटिक्स पर रहते हैं और कई बार उनकी हालत इतनी बिगड़ जाती है कि उन्हें स्टेरॉयड तक देने पड़ते हैं. इस लिहाज से बच्चों के खान-पान में ध्यान देना बेहद जरूरी है. कुछ टिप्स-
1. अपने बच्चों के खाने में उन चीजों को शामिल करना चाहिए जो न सिर्फ एलर्जी से लड़ने में उनकी मदद करें, बल्कि उनके शरीर की इम्यूनिटी भी बढ़ाएं.
2. बादाम, मछली जैसे सैलमॉन, पटसन के बीज और सोयाबीन तेल में मौजूद जरूरी पॉलीअनसेचुरेटेड फैट अम्ल आपके बच्चों के खाने में शामिल होकर उन्हें एलर्जी संबंधी बीमारियों से दूर रखते हैं.
3. इनका सेवन आपके बच्चे को खास तौर से अस्थमा और नाक में जलन के खतरे को रोकने में कारगर होगा.
अस्थमा और नाक की एलर्जी संबंधी बीमारियों से बच्चों के बचपन पर असर पड़ता है.
4. पॉलीअनसेचुरेड फैट अम्ल में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटअम्ल आते हैं, जिन्हें एराकिडोनिक अम्ल कहते हैं.
5. ऐसे बच्चों में, जिनमें आठ साल की उम्र में ओमेगा 3 का हाई ब्लड लेवल होता है, उनमें 16 साल की उम्र में अस्थमा, नाक में जलन और श्लेष्मा झिल्ली में एलर्जी होने का खतरा कम रहता है.
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