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डिलीवरी के बाद रखें ब्लड प्रेशर पर नजर, हो सकता है दिल को खतरा...

गंभीर मामलों में हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है.

डिलीवरी के बाद रखें ब्लड प्रेशर पर नजर, हो सकता है दिल को खतरा...

गर्भावस्था हर महिला के लिए वह समय है जिसकी हर बात उसके साथ हमेशा के लिए यादों में रहती है. इस दौरान शरीर में कई बदलाव होते हैं. कई बदलाव या परेशानियां अस्थाई होती हैं, तो कई आगे तक साथ चलती हैं. गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप होने पर महिलाओं को दिल की बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है. जिन मरीजों को पहले भी उच्च रक्तचाप हो चुका है, उनमें यह खतरा दोगुना रहता है. इसलिए यह आवश्यक है कि प्रसव के तुरंत बाद और अस्पताल से छुट्टी देने से पहले महिलाओं के रक्तचाप की निगरानी की जाए. 

मैक्स बालाजी अस्पताल में कार्डियक कैथ लैब के प्रमुख चिकित्सक डॉ. मनोज कुमार ने कहा, "गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप मां और बच्चे दोनों के लिए एक बड़ा जोखिम होता है. उच्च रक्तचाप पूरे शरीर में रक्त प्रवाह में बाधा डाल सकता है, जिसमें प्लेसेंटा और गर्भाशय शामिल हैं. यह भ्रूण की वृद्धि को प्रभावित करता है और गर्भाशय से प्लेसेंटा के समय से पहले विच्छेदन को रोकता है. अगर प्रसव के पहले, उसके दौरान और बाद में बारीकी से निगरानी न की जाए तो उच्च रक्तचाप ऐसी महिलाओं में हृदयाघात सहित दिल की अन्य समस्याओं का एक प्रमुख कारण बन सकता है. उच्च रक्तचाप के कुछ अन्य घातक प्रभावों में समय से पहले बच्चे का जन्म, दौरे, या मां-बच्चे की मौत तक शामिल हैं."
 
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कुमार के अनुसार, हृदयाघात (हार्ट फेल्योर) या पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी, प्रसव के बाद पांच महीने तक हो सकती है. इस स्थिति के कुछ लक्षणों में थकावट, सांस की तकलीफ, एड़ी में सूजन, गर्दन की नसों में सूजन और दिल की धड़कनें अनियमित होना शामिल हैं.

पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी की गंभीरता को निकास अंश या इजेक्शन फ्रेक्शन कहा जाता है, जिसे मापा जा सकता है. यह रक्त की वह मात्रा है, जिसे हृदय प्रत्येक धड़कन के साथ बाहर पम्प करता है. एक सामान्य निकास अंश संख्या लगभग 60 प्रतिशत होती है.

डॉ. कुमार ने कहा, "प्रसवोत्तर उच्च रक्तचाप से प्रभावित महिलाओं को कुछ समय के लिए अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए. हालांकि हृदयाघात (हार्ट फेल्योर) के कारण होने वाली क्षति को रोका नहीं जा सकता, फिर भी कुछ दवाओं और उपचार की मदद से स्थिति में आराम मिल सकता है. गंभीर मामलों में हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है. ऐसी महिलाएं दोबारा जब गर्भ धारण करना चाहें तो जीवनशैली में कुछ बदलाव करके रक्तचाप को नियंत्रण में रख सकती हैं."

रक्तचाप नियंत्रित करने के कुछ सुझाव : 

- गर्भवती होने से पहले रक्तचाप के स्तर को जानें.

- नमक या सोडियम का अधिक गर्भावस्था हर महिला के लिए वह समय है जिसकी हर बात उसके साथ हमेशा के लिए यादों में रहती है. इस दौरान शरीर में कई बदलाव होते हैं. कई बदलाव या परेशानियां अस्थाई होती हैं, तो कई आगे तक साथ चलती हैं. गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप होने पर महिलाओं को दिल की बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है. जिन मरीजों को पहले भी उच्च रक्तचाप हो चुका है, उनमें यह खतरा दोगुना रहता है. इसलिए यह आवश्यक है कि प्रसव के तुरंत बाद और अस्पताल से छुट्टी देने से पहले महिलाओं के रक्तचाप की निगरानी की जाए. 

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मैक्स बालाजी अस्पताल में कार्डियक कैथ लैब के प्रमुख चिकित्सक डॉ. मनोज कुमार ने कहा, "गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप मां और बच्चे दोनों के लिए एक बड़ा जोखिम होता है. उच्च रक्तचाप पूरे शरीर में रक्त प्रवाह में बाधा डाल सकता है, जिसमें प्लेसेंटा और गर्भाशय शामिल हैं. यह भ्रूण की वृद्धि को प्रभावित करता है और गर्भाशय से प्लेसेंटा के समय से पहले विच्छेदन को रोकता है. अगर प्रसव के पहले, उसके दौरान और बाद में बारीकी से निगरानी न की जाए तो उच्च रक्तचाप ऐसी महिलाओं में हृदयाघात सहित दिल की अन्य समस्याओं का एक प्रमुख कारण बन सकता है. उच्च रक्तचाप के कुछ अन्य घातक प्रभावों में समय से पहले बच्चे का जन्म, दौरे, या मां-बच्चे की मौत तक शामिल हैं."

कुमार के अनुसार, हृदयाघात (हार्ट फेल्योर) या पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी, प्रसव के बाद पांच महीने तक हो सकती है. इस स्थिति के कुछ लक्षणों में थकावट, सांस की तकलीफ, एड़ी में सूजन, गर्दन की नसों में सूजन और दिल की धड़कनें अनियमित होना शामिल हैं.

पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी की गंभीरता को निकास अंश या इजेक्शन फ्रेक्शन कहा जाता है, जिसे मापा जा सकता है. यह रक्त की वह मात्रा है, जिसे हृदय प्रत्येक धड़कन के साथ बाहर पम्प करता है. एक सामान्य निकास अंश संख्या लगभग 60 प्रतिशत होती है.

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डॉ. कुमार ने कहा, "प्रसवोत्तर उच्च रक्तचाप से प्रभावित महिलाओं को कुछ समय के लिए अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए. हालांकि हृदयाघात (हार्ट फेल्योर) के कारण होने वाली क्षति को रोका नहीं जा सकता, फिर भी कुछ दवाओं और उपचार की मदद से स्थिति में आराम मिल सकता है. गंभीर मामलों में हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है. ऐसी महिलाएं दोबारा जब गर्भ धारण करना चाहें तो जीवनशैली में कुछ बदलाव करके रक्तचाप को नियंत्रण में रख सकती हैं."
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रक्तचाप नियंत्रित करने के कुछ सुझाव : 

- गर्भवती होने से पहले रक्तचाप के स्तर को जानें.

- नमक या सोडियम का अधिक सेवन रक्तचाप को बढ़ा सकता है. इसलिए, नमक कम खाएं.

- गर्भ धारण करने से पहले खूब चलें-फिरें और सक्रिय रहें. एक ही जगह पर बैठे रहने वाली महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ने की संभावना रहती है, साथ ही बाद में उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ सकता है.

- ऐसी कोई दवा न लें, जो रक्तचाप को बढ़ाती हो.

- यदि आपको पहले से ही उच्च रक्तचाप की शिकायत है, तो अपने डॉक्टर से उन सावधानियों के बारे में बात करें, जिनका पालन करने की आवश्यकता है.

- नियमित रूप से प्रसवपूर्व चेकअप कराती रहें.

- गर्भावस्था के दौरान तम्बाकू और शराब का सेवन उचित नहीं है और इससे बचा जाना चाहिए.सेवन रक्तचाप को बढ़ा सकता है. इसलिए, नमक कम खाएं.

- गर्भ धारण करने से पहले खूब चलें-फिरें और सक्रिय रहें. एक ही जगह पर बैठे रहने वाली महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ने की संभावना रहती है, साथ ही बाद में उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ सकता है.

- ऐसी कोई दवा न लें, जो रक्तचाप को बढ़ाती हो.

- यदि आपको पहले से ही उच्च रक्तचाप की शिकायत है, तो अपने डॉक्टर से उन सावधानियों के बारे में बात करें, जिनका पालन करने की आवश्यकता है.

- नियमित रूप से प्रसवपूर्व चेकअप कराती रहें.

- गर्भावस्था के दौरान तम्बाकू और शराब का सेवन उचित नहीं है और इससे बचा जाना चाहिए.

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