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आखिर क्यों दी जाती है मेंस्ट्रुअल कप्स की सलाह, कैसे हैं सैनिटरी नैपकिन, टैम्पॉन से बेहतर

मेंस्ट्रुअल कप्स सैनिटरी नैपकिन्स और टैम्पॉन की तरह ब्लड को सोखते नहीं है, जिस वजह से वजाइनल इंफेक्शन होने का खतरा बहुत कम हो जाता है.

आखिर क्यों दी जाती है मेंस्ट्रुअल कप्स की सलाह, कैसे हैं सैनिटरी नैपकिन, टैम्पॉन से बेहतर

क्यों और कैसे करना चाहिए मेंस्ट्रुअल कप्स का इस्तेमाल

खास बातें

  1. मेंस्ट्रुअल कप्स सैनिटरी नैपकिन्स और टैम्पॉन से सस्ता
  2. मेंस्ट्रुअल कप्स को 4 से 5 तक इस्तेमाल कर सकते हैं
  3. मेंस्ट्रुअल कप्स से पर्यावरण दूषित नहीं होता
मेंस्ट्रुअल कप्स सैनिटरी नैपकिन्स और टैम्पॉन की तरह ब्लड को सोखते नहीं है, जिस वजह से वजाइनल इंफेक्शन होने का खतरा बहुत कम हो जाता है. आप इन्हें 4 से 5 साल तक इस्तेमाल कर सकती हैं. इसके लिए बस ज़रूरी है हर इस्तेमाल के बाद इसे सैनिटाइज़ करना. आगे उन्होंने कहा कि मेंस्ट्रुअल कप्स को किसी भी उम्र में लड़कियां और महिलाएं इस्तेमाल कर सकती हैं.

वो दिन गए जब महंगे सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल किया जाता था. ये ना तो एनवायरनमेंट फ्रेंडली होते हैं और ना ही कंफर्टेबल. इसीलिए अब मेंस्ट्रुअल कप्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. मेडिकल-ग्रेड सिलिकॉन से बने बेल आकार के होते हैं मेंस्ट्रुअल कप्स. यह बहुत ज्यादा फ्लेक्सिबल होते हैं, जिसे आराम से वजाइना में इन्सर्ट किया जा सकता है. लेकिन इसे लेकर अभी भी कई सवाल हैं जो महिलाओं के दिमाग में आते हैं. आज आपको मेंस्ट्रुअल कप्स से जुड़े सभी सवालों के जवाब यहां मिल जाएगें. 

यूएन की एनवायरनमेंट गुडविल एम्बेसडर बनीं दिया मिर्जा ने भी बताया कि वह पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल नहीं करती हैं. क्योंकि पर्यावरण को ये बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. वह बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स का इस्तेमाल करती हैं, जो कि सौ प्रतिशत नैचुरल है. इसी वजह से उन्होंने कभी सैनिटरी नैपकिन्स का विज्ञापन नहीं किया. 

कैसे करना है इस्तेमाल
मेंस्ट्रुअल कप्स को पहले सी-शेप में फोल्ड करें और फिर वजाइना में इन्सर्ट कर लें. इसे लगाते ही ये अपने आप वजाइना की बाहरी लेयर में फिट हो जाएगा. यानी ये आपके वजाइना को पूरी तरह सील कर देगा. इसे लगाने के बाद हल्का घुमाकर देखें कि ये अच्छे से लगा है या नहीं. इसे 12 घंटे तक चेंज करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. 

क्या होगा फायदा
सैनिटरी नैपकिन और टैम्पॉन में लगा ब्लड लंबे समय तक आपके वजाइना के आप-पास लगा रहता है, लेकिन मेंस्ट्रुअल कप्स में नहीं होता. इसमें ब्लड कप में इकठ्ठा होता रहता है, जिस वजह से कभी भी TSS (टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम) नहीं होता. ये एक रेयर बैक्टिरियल बीमारी है जो लंबे समय तक गीले नैपकीन और टैम्पॉन को इस्तेमाल करने से होती है.   
 
menstrual cups

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
डॉ. रागिनी अग्रवाल का कहना है कि "मेंस्ट्रुअल कप्स आपकी वेजिनल हेल्थ के लिए बहुत अच्छे होते हैं. इन्हें बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है और ये काफी सस्ते भी आते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा है कि ये वातावरण को दूषित नहीं करते. एक कप को आप घंटों तक लगाकर रख सकती हैं."

इसी के साथ उन्होंने कहा कि सैनिटरी नैपकिन्स में प्लास्टिक और कैमिकल्स अवयव पाए जाते हैं, जिससे कैंसर और इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता है. इसीलिए ज़रूरी है कि महिलाओं को मेंस्ट्रुअल कप्स के बारे ज़्यादा से ज़्यादा जागरूक किया जाए. 

क्या ना करें
डॉ. रागिनी अग्रवाल ने बताया कि एक कप को कोई एक ही इस्तेमाल करे. हर इस्तेमाल के बाद इसे अच्छे से साफ करें. इसे गरम पानी से धोकर साफ किया जा सकता है. 

आपको बता दें कि एक महिला द्वारा पूरे मेंस्ट्रुअल पीरियड के दौरान इस्तेमाल किए गए सैनेटरी नैपकिन्स से करीब 125 किलो नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा बनता है. 2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है.
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