बुखार कई प्रकार के होते हैं. इसमें मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, पीलिया और टायफायड शामिल हैं. इन सभी के लक्षण मिलते-जुलते रहते हैं.

मौसम बदलता है तो आम तौर पर लोगों का मूड भी बदलता है. खासकर बारिशों के मौसम में... इस सुहाने मौसम में लोग घर से दूर जाना भी पसंद करते हैं. यह एक अच्छा समय होता है जब हम सभी परिवार के साथ कुछ समय बिता लेना चाहते हैं. लेकिन यह मौसम का बदलाव अच्छे अनुभवों की जगह कड़वे अनुभव भी ला सकता है. अक्सर सीजन के बदलने पर लोगों को कई बीमारियां अपनी चपेट में ले लेती हैं, जैसे जुखाम, खांसी, बुखार. कई लोग ऑफिस या काम पर जाने के लिए एंटीबायोटिक का सेवन करते हैं, ऐसा करना गलत है. बिना डॉक्टर की सलाह लिए कोई भी मेडिसिन लेना शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है. साथ ही मॉनसून में होने वाला बुखार भ्रम भी पैदा करता है.
बुखार कई तरह के हो सकते हैं. जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, पीलिया और टायफायड वगैरह. इन सभी के लक्षण मिलते-जुलते रहते हैं. मॉनसून के बुखार में एस्प्रिन लेना नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि कई किस्म के बुखार में प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगती है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल का कहना है कि अगर मॉनसून में बुखार हो तो इन बातों का ध्यान रखें:
जब तक टायफायड की पहचान न हो जाए, तब तक कोई भी एंटीबायटिक न लें. खांसी, आंखों का लाल होना और जुखाम आदि वायरल विकार की वजह से भी हो सकता है. डेंगू होने पर आखें हिलाने पर दर्द होता है. वहीं, चिकनगुनिया में मरीज़ को बुखार, रैशेज़ और जोड़ों में दर्द होता है. कलाई के जोड़ों को दबाने से जोड़ों का दर्द बढ़ता है. मलेरिया के बुखार में कपकपी छूटती है और कठोरपन आ जाता है. बुखार के बीच में टोक्सीमिया नहीं होता.
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पीलिया में जब तक पीलिया सामने आता है तब तक बुखार चला जाता है. टायफायड का रोगी टॉक्सिक लगता है और उसकी नब्ज बुखार से कम होती है. ज़्यादातर वायरल बुखार अपने आप नियंत्रित होते हैं और एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं. मॉनसून के ज़्यादातर वायरल विकारों में उचित मात्रा में पानी लेने से इलाज हो जाता है. किसी लंबी मेडिकल बीमारी के दौरान बुखार होने पर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए.
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बुखार कई तरह के हो सकते हैं. जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, पीलिया और टायफायड वगैरह. इन सभी के लक्षण मिलते-जुलते रहते हैं. मॉनसून के बुखार में एस्प्रिन लेना नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि कई किस्म के बुखार में प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगती है.
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मॉनसून में होने वाले बुखार के लक्षणइंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल का कहना है कि अगर मॉनसून में बुखार हो तो इन बातों का ध्यान रखें:
जब तक टायफायड की पहचान न हो जाए, तब तक कोई भी एंटीबायटिक न लें. खांसी, आंखों का लाल होना और जुखाम आदि वायरल विकार की वजह से भी हो सकता है. डेंगू होने पर आखें हिलाने पर दर्द होता है. वहीं, चिकनगुनिया में मरीज़ को बुखार, रैशेज़ और जोड़ों में दर्द होता है. कलाई के जोड़ों को दबाने से जोड़ों का दर्द बढ़ता है. मलेरिया के बुखार में कपकपी छूटती है और कठोरपन आ जाता है. बुखार के बीच में टोक्सीमिया नहीं होता.
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पीलिया में जब तक पीलिया सामने आता है तब तक बुखार चला जाता है. टायफायड का रोगी टॉक्सिक लगता है और उसकी नब्ज बुखार से कम होती है. ज़्यादातर वायरल बुखार अपने आप नियंत्रित होते हैं और एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं. मॉनसून के ज़्यादातर वायरल विकारों में उचित मात्रा में पानी लेने से इलाज हो जाता है. किसी लंबी मेडिकल बीमारी के दौरान बुखार होने पर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए.
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