पीएलओएस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में इस मामले में कई पूर्व अध्ययनों की जांच की गई है.
एक अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषित वायु क्रॉनिक किडनी डिजीज(सीकेडी) के खतरे को बढ़ा सकता है और यह तब होता है जब किसी व्यक्ति का गुर्दा खराब हो जाए या गुर्दा खून को सही तरीके से शुद्ध करने में सक्षम न हो. इस अध्ययन में भारतीय मूल के एक अध्ययनकर्ता भी शामिल है.
अध्यन में बताया गया है कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग से ग्रसित लोगों में सीकेडी के विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है.
पीएम2.5 के अलावा प्रदूषित वायु में सीसा, पारा और कैडमियम जैसे भारी धातु मौजूद होते हैं.
अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं ने घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहने वाले रोगियों को एहतियात बरतने की सलाह दी है.
प्रमुख अध्ययनकर्ता जेनिफर ब्रेग-ग्रेशम ने कहा, "उसी तरह धूम्रपान, प्रदूषित वायु में हानिकारक विषैला पदार्थ सीधे गुर्दे को प्रभावित करता है."
उन्होंने कहा, "गुर्दे के जरिए बड़ी मात्रा में खून प्रवाहित होता है, और अगर कोई भी चीज परिसंचरण तंत्र को हानि पहुंचाती है तो गुर्दा सबसे पहले इससे प्रभावित होता है."
इससे पहले के अध्ययन से पता चला था कि वायु प्रदूषण से श्वसन संबंधी समस्या जैसे अस्थमा, मधुमेह की स्थिति बिगड़ना और अन्य गंभीर बिमारी होती है.
पीएलओएस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में इस मामले में कई पूर्व अध्ययनों की जांच की गई है.
सह-अध्ययनकर्ता राजीव सरण ने कहा, "अगर आप कम आबादी वाले क्षेत्र से घनी आबादी वाले क्षेत्र की तुलना करें तो, आप घनी आबादी वाले क्षेत्र में क्रॉनिक किडनी डिजीज की समस्या से ग्रस्त ज्यादा लोगों को पाएंगे."
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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