मलाशय के कैंसर के लिए रेडियोलॉजी, पैथोलॉजी, जीआई सर्जनए मेडिकल और रेडिएशन ओंकोलॉजिस्ट जैसे विशेषज्ञों को साथ आना होगा और एक रणनीति बनानी होगी.

देश-विदेश के शीर्ष स्वास्थ्य संस्थानों के प्रमुख, विशेषज्ञ और डॉक्टरों ने शनिवार को यहां मलाशय कैंसर के उपचार को मानकीकृत और अनुकूलित करने के उद्देश्य से रेक्टल कैंसर ट्रीटमेंट पर विचार-विमर्श किया और बेहतर परिणामों के लिए मल्टी-मॉडलिटी अप्रोच अपनाने पर जोर दिया. बीएलके सुपर स्पेशलिटी अस्पताल ने इलाज को मानकीकृत और उसका प्रोटोकॉल बनाने के लिए रेक्टल कैंसर ट्रीटमेंट आउटकम ग्रुप (आरसीटीओजी) का गठन किया. इस एक दिवसीय बैठक में देश भर से करीब 50 डॉक्टरों ने भाग लिया.
बीएलके सेंटर ऑफ डाइजेस्टिव और लिवर डिसीजेज (सीडीएलडी) के डायरेक्टर डॉ. वी.पी. भल्ला ने कहा, "मलाशय के कैंसर के लिए रेडियोलॉजी, पैथोलॉजी, जीआई सर्जनए मेडिकल और रेडिएशन ओंकोलॉजिस्ट जैसे विशेषज्ञों को साथ आना होगा और एक रणनीति बनानी होगी. इसे मल्टी-मॉडलिटी अप्रोच कहा जाता है."
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एक दिवसीय बैठक में डॉक्टरों ने डायग्नोसिस, पैथोलॉजिकल रिपोर्टिग, नव सहायक-उपचार, कीमोथैरेपी, रोबोटिक सर्जरी सहित नई शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं, रिकॉर्डिग जटिलताओं और फॉलो-अप्स के लिए मानक और प्रोटोकॉल पर चर्चा की और अपने विचार एक-दूसरे के साथ साझा किए.
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मलाशय का कैंसर पश्चिमी देशों की ही तरह हमारे देश में भी बड़ी समस्या बनता जा रहा है. पिछले दो दशक में मलाशय के कैंसर के मामलों में हमारे देश में भी बढ़ोतरी हुई है. इसे तीसरा सबसे आम कैंसर माना जाता है. इसके बढ़ते मामलों की बड़ी वजह शहरीकरण, जंक फूड, धूम्रपान, शराब का सेवन, लाल मांस, जेनेटिक प्रीडिस्पोजिशन और मोटापा है.
बीएलके हॉस्पिटल में सर्जिकल गैस्ट्रोएंट्रो ओंको, बैरियाट्रिक व मिनिमल एक्सेस सर्जरी डायरेक्टर डॉ. दीप गोयल के मुताबिक, "यह देश में अपनी तरह की पहली कोशिश है और आरसीटीओजी की पहली बैठक लक्ष्य तय करने के लिहाज से बहुत अच्छी रही. मानकों और प्रोटोकॉल्स के अभाव में मलाशय के कैंसर का इलाज अनुकूलित नहीं किया जा सकता और इस वजह से नतीजे भी अलग-अलग आते हैं."
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उन्होंने कहा, "इलाज में एकरूपता और बेहतर नतीजों के लिए उपचार का मानकीकरण और प्रोटोकॉल बनाना बेहद जरूरी है. मल्टी-मॉडलिटी अप्रोच से मलाशय के कैंसर से पीड़ित लोगों के लिए बहुत लाभदायक होगा."
डॉ. गोयल ने यह भी कहा कि इससे जागरूकता, संयुक्त अनुसंधान प्रोटोकॉल, युवा चिकित्सा पेशेवरों का प्रशिक्षण, प्रकाशन, नवाचार और बेहतर उपचार परिणामों को साझा करने में मदद मिलेगी.
क्या वाकई एयर प्यूरीफायर लगाने से होता है फायदा?
एम्स, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, मैक्स हॉस्पिटल्स, आरजीसीआईए गंगा राम, अपोलो हॉस्पिटल, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, सीएमसीए वेल्लोर जैसे देश के नामी अस्पतालों के डॉक्टरों ने इसमें भाग लिया. (इनपुट-आईएएनएस)
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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