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ऐसा क्या हुआ कि इराक की यह बच्ची 16 साल बाद अपने पैरों पर चली

इराक की एक बच्ची 16 साल बाद अपने पैरों पर चलने में सक्षम हो पाई है. उसके घुटने 90 डिग्री पर और शरीर जमीन की ओर 45 डिग्री पर मुड़ा हुआ था.

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जरा सोचिए कि जिंदगी के 16 सावन कोई बिना चले गुजार दे... पैरों के होते हुए भी वह बचपन से ही चलने का आनंद न ले सके तो कैसा होगा... ऐसा ही कुछ हुई इस बच्ची के साथ भी, लेकिन इसके जीवन में डॉक्टर्स ने खुशी की लहर नहीं पूरा समंदर उड़ेल दिया... इराक की एक बच्ची 16 साल बाद अपने पैरों पर चलने में सक्षम हो पाई है. उसके घुटने 90 डिग्री पर और शरीर जमीन की ओर 45 डिग्री पर मुड़ा हुआ था. चिकित्सकों ने यहां सफलतापूर्वक उसके कूल्हे और घुटनों की करेक्टिव री-अलाइनमेन्ट सर्जरी की है. नोएडा के जेपी हॉस्पिटल के इन्स्टीट्यूट ऑफ आर्थोपेडिक्स के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. गौरव राठौड़ के नेतृत्व में आर्थोपेडिक सर्जनों की एक टीम ने 16 वर्षीय सजीदा सलाल हातेम की मुश्किल हिप एंड नी करेक्टिव रीअलाईनमेन्ट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है. 

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अस्पताल की तरफ से जारी बयान के अनुसार, इराक से आई यह बच्ची जन्मजात आनुवांशिक बीमारी स्पॉन्डिलो एपीफाइसेल डायस्प्लाजिया से पीड़ित थी, जिसका असर उसकी हड्डियों (स्केलेटल सिस्टम), खासतौर से रीढ़ की हड्डी एवं हाथ-पैर की हड्डियों पर पड़ा और उसका कद भी छोटा रह गया. 

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बयान में डॉ. राठौड़ ने कहा है, "सजीदा सलाल हातेम स्पॉन्डिलो एपीफाइसेल डायस्प्लाजिया से पीड़ित थी, जो इनहेरिटेड बोन ग्रोथ डिसऑर्डर है. इसका असर स्पाइन (स्पॉन्डिलो) और हाथों-पैरों की लम्बी हड्डियों (एपीफायसेज) पर पड़ता है. मैं 2016 में पहली बार सजीदा से मिला, उसका शरीर ऐसी स्थिति में था, जैसे भ्रूण का विकास ठीक से न हुआ हो. उसकी पीठ मुड़ी हुई थी, सिर झुका हुआ था, हाथ-पैर मुड़े हुए थे और धड़ तक ही खिंच पाते थे. 14 वर्षीय मरीज मल्टीपल कॉन्जेनाइटल समस्या के साथ-साथ बाईलेटरल नी कॉन्ट्रैक्च र (मुड़े घुटने) और हाई डेवलपमेंटल डिस्प्लाजिया हिप से पीड़ित थी."

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बयान के अनुसार, 2010 में इराक में उसके घुटनों की सर्जरी की गई, लेकिन उचित चिकित्सा सुविधाओं और विशेषज्ञता की कमी के कारण यह सर्जरी सफल नहीं हुई. मरीज पूरी तरह से बिस्तर पर आ गई थी.

अस्पताल के एसोसिएट कंसल्टेन्ट डॉ. विपुल अग्रवाल ने बताया, "मरीज की रिपोर्ट्स देखने के बाद और उसकी उम्र को ध्यान में रखते हुए हमने फैसला लिया कि हम दो अवस्थाओं में सर्जरी करेंगे. इसका एक कारण यह भी था कि हम देखना चाहते थे कि छोटी सर्जरी करने पर उसकी चाल में कितना सुधार आ पाता है. पहली अवस्था में हमने घुटनों की सर्जरी सुप्राकॉन्डिलर ऑस्टियोटोमीज के द्वारा उसके घुटने सीधे किए, ताकि वह अपनी टांगों पर खड़ी होकर चल सके. यह सर्जरी सफल रही और पूरी तरह से ठीक होने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई. दूसरी अवस्था में, लगभग 18-24 महीनों बाद हमने उसके शरीर के ऊपरी हिस्से में सुधार लाने के लिए हिप सर्जरी का फैसला किया."

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डॉ. राठौड़ ने कहा, "हमने हिप सर्जरी मॉडीफाईड बाईलेटरल कैम्पबेल्स रीलीज के जरिए उसकी कसी हुई पेशियों को ठीक किया और कूल्हे की हड्डी को सीधा किया. कायफोसिस (असामान्य रूप से मुड़ी हुई रीढ़ की हड्डी) के कारण मरीज का शरीर झुका हुआ था. हम सर्जरी द्वारा कूल्हे और घुटनों को एक सीध में लेकर आए, ताकि उसकी चाल ठीक हो सके. सर्जरी सफल रही. सामान्य अवस्था में आने के बाद उसे छुट्टी दे दी गई."

बयान के अनुसार, हातेम ने कहा, "मैं कॉन्जेनायटल डवारफिज्म (पैदायशी बौनापन) से पीड़ित थी, इसलिए मैं कद में छोटी रह गई. मैं अपने रोजमर्रा के काम भी नहीं कर पाती थी, मुझे हर काम के लिए किसी की मदद की जरूरत होती थी. मेरा परिवार मुझे इलाज के लिए भारत लाया. जेपी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने मुझे नया जीवन दिया है."

पहले इस तरह की मुश्किल सर्जरियों के लिए लोगों को अमेरिका या यूरोप जाना पड़ता था. 

 

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