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Low Sperm Count के बावजूद घर में यूं गूंज सकती है बच्चे की किलकारी

इस तकनीक को लेकर कई भ्रांतियां भी हैं. इस प्रक्रिया को लेकर और बच्चे पर इसके प्रभाव को लेकर कुछ संदेह भी हैं.

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शुक्राणु की कमी एक बड़ी वजह है जिसके चलते कई जोड़े बच्चे की किलकारी नहीं सुन पाते. कई बार इलाज और दूसरे तरह के तरीकों को अपनाने के बाद भी शुक्राणुओं की कमी के चलते पुरुष  पिता नहीं बन पाते. लेकिन क्या हो अगर हम आपको बताएं कि अब इसका भी इलाज संभव है. जी हां, इन्ट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन यानी इक्सी पद्धति से कम शुक्राणुओं के बावजूद मां बना जा सकता है. 

हैं कुछ भ्रांतियां भी
इस तकनीक को लेकर कई भ्रांतियां भी हैं. इस प्रक्रिया को लेकर और बच्चे पर इसके प्रभाव को लेकर कुछ संदेह भी हैं. डॉक्टर से बात करने व सही तरीके से समझाने के बाद ही दंपति ने इक्सी पद्धति को अपनाना चाहिए. 

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क्या है इक्सी
इंदिरा आईवीएफ की आईवीएफ विशेषज्ञ, डॉ. निताषा गुप्ता ने बताया, 'इक्सी' आईवीएफ की एक अत्याधुनिक तकनीक है. पुरुषों में कम शुक्राणु के चलते ही इस तकनीक को इजाद किया गया. इसमें महिला के अण्डों को शरीर से बाहर निकालकर लैब में पति के शुक्राणु से इक्सी प्रक्रिया के द्वारा इन्जेक्ट कर भ्रूण तैयार किया जाता है और फिर इस भ्रूण को महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है. इसमें फायदा यह है कि शुक्राणु की संख्या एक से पां मि./एम.एल. होने पर भी इक्सी तकनीक अपनाई जा सकती है. शुक्राणु की कम मात्रा, धीमी गतिशीलता, खराब गुणवत्ता, मृत एवं शून्य शुक्राणु में इक्सी तकनीक कारगर है."
 

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क्या है गर्भपात की बड़ी वजह
वातावरण में मौजूद प्रदूषण पुरुषों की फर्टिलिटी प्रभावित कर रहा है. महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भपात के पीछे भी यह एक प्रमुख कारण है. जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से पुरुषों में शुक्राणुओं के खराब होने और स्पर्म काउंट में कमी आने जैसी समस्याएं भी सामने आ रही हैं. इसके चलते कई बार कोशिश करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो पाता है.
 

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क्या है स्पर्म काउंट में कमी की वजह
आईवीएफ विशेषज्ञ, डॉ. अरविंद वैद के अनुसार, "पुरुषों में फर्टिलिटी कम होती जा रही है. इसका सबसे पहला और प्रमुख संकेत संभोग की इच्छा में कमी के रूप में सामने आता है. स्पर्म सेल्स के खाली रह जाने और उनका अधोपतन होने के पीछे जो मैकेनिज्म मुख्य कारण के रूप में सामने आता है, उसे एंडोक्राइन डिसरप्टर एक्टिविटी कहा जाता है, जो एक तरह से हारमोन्स का असंतुलन है. पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे जहरीले कण, जो हमारे बालों से भी 30 गुना ज्यादा बारीक और पतले होते हैं, उनसे युक्त हवा जब सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में जाती है, तो उसके साथ उसमें घुले कॉपर, जिंक, लेड जैसे घातक तत्व भी हमारे शरीर में चले जाते हैं, जो प्रकृति में एस्ट्रोजेनिक और एंटीएंड्रोजेनिक होते हैं. लंबे समय तक जब हम ऐसे जहरीले कणों से युक्त हवा में सांस लेते हैं, तो उसकी वजह से संभोग की इच्छा पैदा करने के लिए जरूरी टेस्टोस्टेरॉन और स्पर्म सेल के प्रोडक्शन में कमी आने लगती है."

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