बच्चों के लिए सबसे अधिक शिक्षात्मक खिलौने वो होते हैं जो बच्चों का खेल-खेल में बड़ों के साथ व्यवहार स्थापित करवा सके. खिलौनों को कभी भी माता-पिता के लाड-प्यार के विकल्प की तरह नहीं देखा जाना चाहिए.
खिलौने ऐसे होने चाहिए जो बच्चों को सीखने में मदद करें और उनके भीतर कलात्मकता को बढ़ावा देते हुए सभी क्षेत्रों में विकास करें. ऐसे खिलौने जो सुरक्षित और आपके आर्थिक सामर्थ्य के अनुरूप हो.
हमें ऐसे खिलौनों से बच्चों को दूर रखना चाहिए जोकि बच्चों की कल्पना शक्ति को बढ़ने ना दें. बच्चों के अदंर सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक कौशल का विकास तभी हो पाता है जब बच्चे खेल के माध्यम से असल जीवन की परेशानियां सुलझाने की कला सीखते हैं.
खिलौने का महंगा और ट्रैंडी होना जरूरी नहीं, जरूरी है उनका विचारशील होना किताबों और मैग्जीन को एक साथ पढ़ने और खेलने के लिए इस्तेमाल करें.
खिलौनों के प्रचार में किए गए शिक्षात्मक और विकासशील वादों को लेकर हमेशा संदेह प्रकट करें और उनके वादों की जांच करने के बाद ही उन्हें खरीदें.
जो बच्चों के अंदर हिंसा, समाजिक, जातीय, और लैंगिक असमानता को बढ़ावा देते हुए नकारात्मक प्रभाव डालें, ऐसे खिलौनों से बच्चों को कोसों दूर रखें
बच्चों को दिन में 1 या 2 घंटे से ज्यादा वीडियोगेम या टीवी देखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. 5 साल से छोटे बच्चों को कमप्यूटर तभी चलाने की अनुमति मिलनी चाहिेए जब वह बच्चे के विकास के लिए जरूरी हो. और ऐसी अवस्था में भी बच्चे के साथ किसी बड़े का होना जरूरी है.
इस बात का ध्यान रखें कि खिलौने टॉक्सिक ना हों और नाहीं उनके किनारे नुकीले हों.
वे खिलौने जो खुलकर आसानी से छोटे हिस्सों में तब्दील हो जाते हैं ऐसे खिलौनों को छोटे बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए क्योंकि कई बार बच्चें उन टुकड़ों को अपने मुंह में डाल लेते हैं.